Wednesday, October 29, 2025

पृथ्वी का गतिशील धरातल


🌍 अध्याय – पृथ्वी का गतिशील धरातल (The Dynamic Surface of the Earth)

🪐 परिचय (Introduction)

पृथ्वी एक गतिशील ग्रह है। इसका अर्थ है कि इसकी सतह (धरातल) हमेशा बदलती रहती है।
धरती की सतह कभी भी स्थिर नहीं रहती, बल्कि लगातार आंतरिक और बाह्य शक्तियों के प्रभाव से बनती, बिगड़ती और परिवर्तित होती रहती है।

इन शक्तियों के कारण पर्वत, पठार, मैदान, घाटियाँ, झीलें, रेगिस्तान, ज्वालामुखी, और डेल्टा जैसी विविध स्थलाकृतियाँ निर्मित होती हैं।

पृथ्वी की आंतरिक और बाह्य शक्तियाँ (Forces Acting on the Earth)

धरती के परिवर्तन का कारण दो प्रकार की शक्तियाँ होती हैं —

  1. आंतरिक शक्तियाँ (Endogenic Forces)

  2. बाह्य शक्तियाँ (Exogenic Forces)

1. आंतरिक शक्तियाँ (Endogenic Forces)

ये शक्तियाँ पृथ्वी के अंदर स्थित गर्म मैग्मा, रेडियोधर्मी पदार्थों और पृथ्वी की आंतरिक ऊर्जा से उत्पन्न होती हैं।
पृथ्वी की अंदरूनी गर्मी, दबाव और पदार्थों की गति के कारण जब ऊर्जा बाहर निकलती है, तो यह धरती की सतह को ऊपर उठाती, फाड़ती या हिला देती है।

🔸 आंतरिक शक्तियों के दो प्रमुख रूप होते हैं —

(A) निर्माणात्मक शक्तियाँ (Constructive Forces)

इन शक्तियों से नई स्थलरूप बनती हैं।
उदाहरण — पर्वत निर्माण, पठार निर्माण, भूमि का ऊपर उठना।

(B) विनाशात्मक शक्तियाँ (Destructive Forces)

इन शक्तियों से पहले से बनी स्थलरूपों को नुकसान पहुँचता है।
उदाहरण — भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, भूमि का धँसना।

आंतरिक प्रक्रियाएँ (Internal Processes)

1️⃣ भूकंप (Earthquake)

 परिभाषा:

भूकंप पृथ्वी की परतों में अचानक ऊर्जा के मुक्त होने से उत्पन्न कंपन है, जो पृथ्वी की सतह को हिलाता है।

भूकंप के प्रमुख तत्व:

  • केंद्र (Focus): वह बिंदु पृथ्वी के भीतर जहाँ से भूकंपी तरंगें उत्पन्न होती हैं।

  • उपरिकेंद्र (Epicenter): केंद्र के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह का बिंदु।

  • भूकंपी तरंगें (Seismic Waves): वे ऊर्जा तरंगें जो सभी दिशाओं में फैलती हैं।

🔸 भूकंपी तरंगों के प्रकार:

प्रकार विवरण
प्राथमिक (P-Waves) सबसे तेज़ तरंगें जो ठोस और द्रव दोनों में चलती हैं।
द्वितीयक (S-Waves) केवल ठोस पदार्थों में चलती हैं, गति P से कम होती है।
सतही (L-Waves) सतह पर चलती हैं और सबसे अधिक विनाशकारी होती हैं।

मापन:

  • सीस्मोग्राफ (Seismograph): भूकंप दर्ज करने वाला यंत्र।

  • रिक्टर पैमाना (Richter Scale): भूकंप की तीव्रता मापने का पैमाना (0–10 तक)।

⚠️ भूकंप के प्रभाव:

  1. भवनों का ध्वंस और जनहानि।

  2. सड़कों, पुलों और नदियों का विनाश।

  3. पर्वतों का टूटना और भूमि में दरारें।

  4. नदियों के मार्ग बदल जाना।

  5. तटीय क्षेत्रों में सुनामी जैसी लहरें उत्पन्न होना।

भूकंप से सुरक्षा के उपाय:

  • भूकंप रोधी भवन निर्माण।

  • खुले स्थानों में रहना।

  • विद्युत और गैस कनेक्शन बंद करना।

2️⃣ ज्वालामुखी (Volcano)

 परिभाषा:

पृथ्वी के अंदर की गर्म गैसें, भाप, राख और लावा जब सतह पर निकलते हैं, तो उस प्रक्रिया को ज्वालामुखी विस्फोट कहा जाता है।

🔹 ज्वालामुखी की रचना:

  1. मैग्मा कक्ष (Magma Chamber): जहाँ पिघला हुआ लावा जमा रहता है।

  2. मुख्य नलिका (Main Vent): जिससे होकर लावा ऊपर आता है।

  3. क्रेटर (Crater): ज्वालामुखी का मुख या मुहाना, जहाँ से लावा बाहर निकलता है।

🔸 ज्वालामुखियों के प्रकार:

प्रकार विशेषताएँ उदाहरण
सक्रिय (Active) लगातार या समय-समय पर विस्फोट करते हैं माउंट एटना (इटली), स्ट्रोम्बोली
सुप्त (Dormant) लंबे समय से शांत पर सक्रिय हो सकते हैं माउंट वेसुवियस (इटली)
निष्क्रिय (Extinct) अब कोई गतिविधि नहीं होती माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका)

🌋 ज्वालामुखी के लाभ:

  • उपजाऊ मिट्टी (लावा भूमि)।

  • खनिज पदार्थों की प्राप्ति।

  • भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy)।

⚠️ हानियाँ:

  • जनधन की हानि।

  • पर्यावरण और वायु प्रदूषण।

  • कृषि भूमि का विनाश।

बाह्य शक्तियाँ (Exogenic Forces)

बाह्य शक्तियाँ पृथ्वी की सतह पर कार्य करती हैं और ये सूर्य की ऊर्जा, वर्षा, वायु, हिम तथा गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होती हैं।

इनका कार्य अपक्षय (Weathering), अपवाहन (Erosion) और संचयन (Deposition) के रूप में दिखाई देता है।

1️⃣ अपक्षय (Weathering)

 परिभाषा:

अपक्षय वह प्रक्रिया है जिसमें चट्टानें अपने स्थान पर रहते हुए टूटती, फटती या घुलती हैं।
इसमें पदार्थ का स्थानांतरण नहीं होता।

🔸 अपक्षय के प्रकार:

प्रकार कारण उदाहरण
भौतिक अपक्षय तापमान में परिवर्तन, ठंड-गर्मी रेगिस्तान की चट्टानों का टूटना
रासायनिक अपक्षय जल, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड से रासायनिक क्रिया चूना पत्थर का घुलना
जैविक अपक्षय जीव-जंतु, पौधे, जड़ें आदि पेड़ों की जड़ों से चट्टानों का टूटना

2️⃣ अपवाहन (Erosion)

 परिभाषा:

अपवाहन वह प्रक्रिया है जिसमें बहता हुआ जल, वायु या हिमनद चट्टानों को काटकर दूर ले जाता है।
यह प्रक्रिया स्थलरूपों को धीरे-धीरे क्षीण करती है।

🔹 अपवाहन करने वाले प्रमुख एजेंट:

एजेंट कार्य स्थलरूप उदाहरण
नदी (River) घाटियाँ काटती है, डेल्टा बनाती है गंगा डेल्टा
हिमनद (Glacier) चट्टानें काटकर यू-आकार की घाटियाँ बनाता है आल्प्स क्षेत्र
वायु (Wind) रेगिस्तान में टीलों का निर्माण थार मरुस्थल
समुद्र (Sea Waves) तटीय क्षेत्र को काटकर खाड़ी बनाता है अरब सागर तट

3️⃣ संचयन (Deposition)

जब अपवाहक एजेंट अपनी ऊर्जा खो देता है, तो वह अपने द्वारा लाई गई सामग्री (रेत, मिट्टी, कंकड़ आदि) को किसी स्थान पर जमा कर देता है।
इसे संचयन कहते हैं।

🔸 उदाहरण:

  • नदी के मुहाने पर डेल्टा का निर्माण

  • हिमनद द्वारा छोड़े गए पत्थरों से मोरेन

  • वायु द्वारा बनाए गए रेत के टीले (Dunes)

मुख्य स्थलरूप (Major Landforms of the Earth)

स्थलरूप निर्माण की प्रक्रिया उदाहरण
पर्वत (Mountains) आंतरिक शक्तियों से भूमि का उठना हिमालय, आल्प्स
पठार (Plateaus) ज्वालामुखीय गतिविधियों या उठाव से दक्कन पठार
मैदान (Plains) नदियों द्वारा संचयन से गंगा का मैदान
घाटियाँ (Valleys) अपवाहन (Erosion) से कश्मीर घाटी
टीलें (Dunes) वायु संचयन से थार मरुस्थल

धरातल परिवर्तन का संतुलन (Balance of Earth’s Surface)

पृथ्वी की सतह का स्वरूप आंतरिक और बाह्य शक्तियों के संतुलन से बना है।
आंतरिक शक्तियाँ भूमि को उठाती हैं, जबकि बाह्य शक्तियाँ उसे नीचा करती हैं।
दोनों के निरंतर क्रिया–प्रतिक्रिया से ही पृथ्वी की सतह का स्वरूप स्थिर रहता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

  • पृथ्वी का धरातल गतिशील (Dynamic) है।

  • आंतरिक शक्तियाँ नई स्थलरूपों का निर्माण करती हैं, जबकि बाह्य शक्तियाँ उन्हें तोड़कर पुनः बनाती हैं।

  • यह निरंतर प्रक्रिया पृथ्वी की सुंदर विविध स्थलाकृतियों को जन्म देती है।

  • इस प्रकार, पृथ्वी का हर हिस्सा निरंतर परिवर्तनशील है — यही इसका “गतिशील धरातल” कहलाता है।

1. भू-संतुलन क्या है?

भू-संतुलन (Isostasy) पृथ्वी की पर्पटी की वह स्थिति है जिसमें पृथ्वी की विभिन्न सतहें अपने भार और घनत्व के अनुसार संतुलित रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि पृथ्वी का ऊपरी भाग (महाद्वीप और महासागर) नीचे स्थित घने पदार्थ पर इस प्रकार तैरता है जैसे बर्फ पानी पर तैरती है। जब किसी क्षेत्र में भार बढ़ता या घटता है, तो पृथ्वी का संतुलन बिगड़ता है और धीरे-धीरे पुनः संतुलन स्थापित हो जाता है।

2. एअरी के अनुसार भू-संतुलन की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।

एअरी (Airy) के अनुसार पृथ्वी की सतह पर ऊँचाई और गहराई में अंतर होने का कारण घनत्व में अंतर है।
उनका मत था कि पर्वतों का आधार गहराई में अधिक होता है और यह आधार हल्के पदार्थ का बना होता है।
इसलिए ऊँचे पर्वतों के नीचे पर्पटी का भाग अधिक गहराई तक फैला होता है और भारी नहीं होता। इस प्रकार पृथ्वी की सतह भार और घनत्व के अंतर के कारण संतुलन में रहती है।

3. प्रैट द्वारा प्रतिपादित पृथ्वी के भू-संतुलन की व्याख्या कीजिए।

प्रैट (Pratt) का मत एअरी से भिन्न था।
उन्होंने कहा कि पृथ्वी की पर्पटी की मोटाई सभी जगह लगभग समान है, परंतु घनत्व में अंतर है।
अर्थात ऊँचे स्थल हल्के पदार्थों से बने हैं और नीचले स्थल भारी पदार्थों से।
इस प्रकार घनत्व के अंतर के कारण पृथ्वी संतुलन की स्थिति में बनी रहती है।

4. एअरी और प्रैट के विचारों में अंतर बताइए।

बिंदु एअरी का सिद्धांत प्रैट का सिद्धांत
1. आधार पर्पटी की मोटाई में अंतर पर्पटी के घनत्व में अंतर
2. ऊँचाई का कारण ऊँचाई पर मोटाई अधिक ऊँचाई पर घनत्व कम
3. उदाहरण हिमालय का आधार गहरा पर्वतीय क्षेत्र हल्के पदार्थों के कारण ऊँचे
4. संतुलन का आधार गहराई में भिन्नता घनत्व में भिन्नता

5. वैश्विक स्तर पर भू-मंडलीय संतुलन की चर्चा कीजिए।

वैश्विक स्तर पर भू-मंडलीय संतुलन (Global Isostasy) का अर्थ है कि संपूर्ण पृथ्वी की सतह पर महाद्वीप और महासागर अपने-अपने भार और घनत्व के अनुसार संतुलन बनाए रखते हैं। जब किसी क्षेत्र में अपरदन, हिमपात या ज्वालामुखी विस्फोट जैसी घटनाओं से भार बढ़ता या घटता है, तो संतुलन बिगड़ता है और धीरे-धीरे पृथ्वी पुनः संतुलन प्राप्त करती है। यह संतुलन भूगर्भीय समयावधि में धीरे-धीरे पुनः स्थापित होता है।

6. महाद्वीपीय विस्थापन के प्रमाणों की चर्चा कीजिए।

महाद्वीपीय विस्थापन (Continental Drift) सिद्धांत के प्रमाण इस प्रकार हैं—

  1. महाद्वीपों की आकृतियों की समानता – दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के तट एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं।

  2. जीवाश्म प्रमाण – विभिन्न महाद्वीपों पर समान प्रकार के जीवाश्म पाए गए हैं।

  3. भूगर्भीय संरचनाओं की समानता – कई महाद्वीपों पर समान चट्टानों और पर्वतों का क्रम पाया गया है।

  4. जलवायु प्रमाण – अब शीत प्रदेशों में पाए जाने वाले हिमाच्छादन के निशान पूर्व में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मिले हैं।

  5. समुद्र तल के प्रमाण – महासागरीय मध्य पर्वत श्रृंखलाओं से प्लेटों के खिसकने के प्रमाण मिलते हैं।

7. प्लेट क्या हैं? प्लेट संचलन के रचनातंत्र की व्याख्या कीजिए।

प्लेटें (Plates) पृथ्वी की लिथोस्फीयर के बड़े-बड़े ठोस खंड हैं जो एस्थेनोस्फीयर पर तैरते हैं।
पृथ्वी की सतह 7 प्रमुख और कई छोटी प्लेटों में विभाजित है।
प्लेट संचलन तंत्र (Plate Tectonics):
यह सिद्धांत बताता है कि ये प्लेटें पृथ्वी के भीतर की ऊष्मा और संवहन धारा के कारण गतिशील रहती हैं।
इनकी गति के कारण ही पर्वत, भूकंप, ज्वालामुखी और महासागरीय गर्त बनते हैं।

8. प्लेट सीमाओं पर होने वाली क्रियाओं की चर्चा कीजिए।

प्लेट सीमाओं (Plate Boundaries) पर तीन प्रमुख प्रकार की क्रियाएँ होती हैं—

  1. संमिलन सीमाएँ (Convergent boundaries) – दो प्लेटें आपस में टकराती हैं जिससे पर्वत या गर्त बनते हैं (जैसे – हिमालय)।

  2. विचलन सीमाएँ (Divergent boundaries) – दो प्लेटें एक-दूसरे से दूर जाती हैं जिससे नए महासागरीय पर्वत बनते हैं।

  3. रूपांतर सीमाएँ (Transform boundaries) – प्लेटें एक-दूसरे के समानांतर खिसकती हैं, जिससे भूकंप आते हैं (जैसे – सान एंड्रियास फॉल्ट)।

9. भूकंप और ज्वालामुखी के वितरण का प्लेट सीमाओं के संदर्भ में वर्णन कीजिए।

भूकंप और ज्वालामुखी अधिकतर प्लेट सीमाओं के पास पाए जाते हैं क्योंकि वहीं पर प्लेटों की टकराहट, विचलन या खिसकने की क्रियाएँ होती हैं।

  • संमिलन सीमाओं पर गहरे गर्त और शक्तिशाली भूकंप होते हैं।

  • विचलन सीमाओं पर नए ज्वालामुखी और महासागरीय पर्वत श्रृंखलाएँ बनती हैं।

  • रूपांतर सीमाओं पर भूकंप की आवृत्ति अधिक होती है।
    इस प्रकार प्लेट सीमाएँ पृथ्वी के गतिशील धरातल का प्रमुख केंद्र हैं।


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