Tuesday, December 23, 2025

मौर्योत्तर काल

मौर्योत्तर काल (Post-Mauryan Period)

1. मौर्योत्तर काल का अर्थ एवं समय-सीमा

मौर्य साम्राज्य के पतन के पश्चात भारत के इतिहास में जिस नए काल का आरंभ हुआ, उसे मौर्योत्तर काल कहा जाता है। सामान्यतः यह काल लगभग 200 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक माना जाता है। इस काल में भारत में एक शक्तिशाली केंद्रीय सत्ता का अभाव हो गया और देश अनेक छोटे-बड़े राज्यों में विभाजित हो गया। इस युग में राजनीतिक विखंडन के साथ-साथ सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक तथा कलात्मक गतिविधियों में भी उल्लेखनीय परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इसलिए यह काल केवल राजनीतिक पतन का नहीं, बल्कि व्यापक सांस्कृतिक विकास का काल भी माना जाता है।

2. मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण

मौर्य साम्राज्य के पतन के पीछे कई आंतरिक और बाह्य कारण उत्तरदायी थे।

2.1 अयोग्य उत्तराधिकारी

सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी न तो शक्तिशाली थे और न ही कुशल प्रशासक। वे विशाल साम्राज्य को एकजुट रखने में असफल रहे।

2.2 विशाल साम्राज्य और प्रशासनिक कमजोरी

मौर्य साम्राज्य बहुत विस्तृत था। इसके संचालन के लिए जिस मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था की आवश्यकता थी, वह धीरे-धीरे कमजोर पड़ गई।

2.3 आर्थिक संकट

अत्यधिक दान, विशाल सेना का खर्च और राजकीय व्यय के कारण राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई।

2.4 ब्राह्मण असंतोष

अशोक द्वारा बौद्ध धर्म को विशेष संरक्षण दिए जाने से ब्राह्मण वर्ग असंतुष्ट हो गया, जिससे आंतरिक विरोध बढ़ा।

2.5 विदेशी आक्रमण

यूनानी, शक और पहलव जैसे विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर आक्रमण किए, जिससे मौर्य साम्राज्य और अधिक कमजोर हो गया।

3. उत्तर भारत का राजनीतिक इतिहास

3.1 शुंग वंश (185–73 ई.पू.)

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में शुंग वंश का उदय हुआ। इस वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग थे। उन्होंने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर सत्ता प्राप्त की। शुंग वंश की राजधानी पाटलिपुत्र थी।

शुंग वंश की प्रमुख विशेषताएँ

  • ब्राह्मण धर्म को संरक्षण

  • वैदिक यज्ञों का पुनरुद्धार

  • अश्वमेध यज्ञ का आयोजन

  • कला और स्थापत्य का विकास

यद्यपि शुंग शासकों को बौद्ध धर्म विरोधी कहा जाता है, फिर भी इस काल में बौद्ध कला का विकास जारी रहा। भरहुत और सांची के स्तूप शुंग काल की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हैं।

3.2 कण्व वंश (73–28 ई.पू.)

शुंग वंश के पश्चात कण्व वंश का उदय हुआ। इस वंश की स्थापना वासुदेव कण्व ने की। कण्व शासक कमजोर थे और उनका शासन अल्पकालिक रहा। राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक कमजोरी के कारण कण्व वंश शीघ्र ही समाप्त हो गया।

4. मौर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमणकारी

4.1 यूनानी (इंडो-ग्रीक)

यूनानी मौर्योत्तर काल के प्रथम विदेशी शासक थे। इनमें मिनांडर (मिलिंद) सबसे प्रसिद्ध था। उसकी राजधानी साकल थी। उसने बौद्ध धर्म अपनाया।

यूनानियों का प्रभाव

  • सिक्कों की कला का विकास

  • मूर्तिकला में यथार्थवाद

  • नगर-योजना में सुधार

“मिलिंद-पन्हो” ग्रंथ यूनानी-बौद्ध संवाद का महत्वपूर्ण उदाहरण है।

4.2 शक

शक मध्य एशिया से आए थे। उन्होंने उत्तर-पश्चिम भारत में शासन स्थापित किया।

प्रमुख शासक

  • रुद्रदामन

योगदान

  • जूनागढ़ शिलालेख

  • शक संवत (78 ई.)

  • क्षत्रप शासन प्रणाली

4.3 पहलव

पहलवों का राजनीतिक प्रभाव सीमित रहा, किंतु उन्होंने भारत और पश्चिम एशिया के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत किया।

5. कुषाण वंश

5.1 कुषाण वंश का उदय

कुषाण वंश मौर्योत्तर काल का सबसे शक्तिशाली राजवंश था। इस वंश के शासकों ने मध्य एशिया से लेकर उत्तर भारत तक विशाल साम्राज्य स्थापित किया।

5.2 कनिष्क – एक महान शासक

कुषाण शासकों में कनिष्क सबसे महान माना जाता है। उसकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी।

कनिष्क का योगदान

  • बौद्ध धर्म (महायान) को संरक्षण

  • चौथी बौद्ध संगीति

  • स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन

  • गांधार कला का विकास

6. दक्षिण भारत का प्रारंभिक इतिहास

6.1 संगम युग

मौर्योत्तर काल में दक्षिण भारत में संगम युग का विकास हुआ।

प्रमुख राज्य

  • चोल

  • चेर

  • पांड्य

विशेषताएँ

  • तमिल संगम साहित्य

  • वीरता और प्रेम का वर्णन

  • संगठित प्रशासन

7. भारत और रोम के बीच व्यापार

मौर्योत्तर काल में भारत और रोमन साम्राज्य के बीच समुद्री व्यापार अत्यंत विकसित हुआ।

7.1 व्यापारिक वस्तुएँ

  • निर्यात: मसाले, कपास, हाथीदांत, रत्न

  • आयात: सोना, चांदी, विलासिता की वस्तुएँ

रोमन सिक्कों की प्राप्ति इस व्यापार का प्रमाण है।

8. कला और स्थापत्य

8.1 गांधार कला

  • यूनानी प्रभाव

  • बुद्ध की मानव आकृति

  • पत्थर की मूर्तियाँ

8.2 मथुरा कला

  • पूर्णतः भारतीय शैली

  • लाल बलुआ पत्थर

  • यक्ष-यक्षिणी मूर्तियाँ

9. धर्म और दर्शन

मौर्योत्तर काल में धार्मिक विविधता देखने को मिलती है।

  • बौद्ध धर्म का महायान रूप

  • ब्राह्मण धर्म का पुनरुत्थान

  • भागवत धर्म का उदय

  • मूर्ति पूजा की शुरुआत

10. मौर्योत्तर काल का ऐतिहासिक महत्व

मौर्योत्तर काल भारतीय इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस काल में राजनीतिक विघटन के बावजूद सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक विकास हुआ। विदेशी प्रभावों को आत्मसात कर भारतीय संस्कृति ने स्वयं को और अधिक समृद्ध बनाया।

महत्वपूर्ण प्रश्न–उत्तर 

अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. मौर्योत्तर काल की समय-सीमा बताइए।
उत्तर: मौर्योत्तर काल लगभग 200 ईसा पूर्व से 300 ईस्वी तक माना जाता है।

प्रश्न 2. शुंग वंश के संस्थापक कौन थे?
उत्तर: शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग थे।

प्रश्न 3. कण्व वंश की स्थापना किसने की?
उत्तर: कण्व वंश की स्थापना वासुदेव कण्व ने की।

प्रश्न 4. यूनानी शासक मिनांडर को बौद्ध ग्रंथों में किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर: मिनांडर को मिलिंद कहा जाता है।

प्रश्न 5. शक संवत की शुरुआत कब हुई?
उत्तर: शक संवत की शुरुआत 78 ईस्वी में हुई।

प्रश्न 6. कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था?
उत्तर: कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. मौर्य साम्राज्य के पतन के कोई तीन कारण लिखिए।

उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पतन के प्रमुख कारणों में अशोक के बाद अयोग्य उत्तराधिकारियों का शासन, विशाल साम्राज्य के कारण प्रशासनिक कमजोरी तथा अत्यधिक दान और सैन्य खर्च के कारण आर्थिक संकट शामिल थे। इसके अतिरिक्त ब्राह्मण वर्ग का असंतोष और विदेशी आक्रमणों ने भी साम्राज्य को कमजोर किया।

प्रश्न 2. शुंग वंश की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
शुंग वंश ने ब्राह्मण धर्म को संरक्षण दिया तथा वैदिक यज्ञों का पुनरुद्धार किया। पुष्यमित्र शुंग द्वारा अश्वमेध यज्ञ कराया गया। इस काल में भरहुत और सांची जैसे स्तूपों का निर्माण हुआ, जिससे कला और स्थापत्य का विकास हुआ।

प्रश्न 3. यूनानी आक्रमणों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:
यूनानी आक्रमणों से भारत में सिक्कों की कला का विकास हुआ। मूर्तिकला में यथार्थवाद आया तथा गांधार कला का विकास हुआ। इसके साथ ही भारत और पश्चिमी देशों के बीच सांस्कृतिक संपर्क बढ़ा।

प्रश्न 4. शक शासकों के योगदान लिखिए।

उत्तर:
शक शासकों ने क्षत्रप शासन प्रणाली की शुरुआत की। रुद्रदामन का जूनागढ़ शिलालेख संस्कृत भाषा का महत्वपूर्ण उदाहरण है। शक संवत (78 ई.) की शुरुआत भी शक शासकों की महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मौर्योत्तर काल में उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में राजनीतिक विखंडन हो गया। सबसे पहले शुंग वंश का उदय हुआ, जिसने पाटलिपुत्र को राजधानी बनाकर शासन किया। इसके बाद कण्व वंश सत्ता में आया, परंतु वह अधिक समय तक शासन नहीं कर सका। इस काल में यूनानी, शक, पहलव और कुषाण जैसे विदेशी शासकों ने भारत के विभिन्न भागों में शासन स्थापित किया। राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद इस काल में प्रशासन, व्यापार और संस्कृति का विकास हुआ।

प्रश्न 2. कनिष्क के शासनकाल की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
कनिष्क कुषाण वंश का महान शासक था। उसकी राजधानी पुरुषपुर थी। उसने बौद्ध धर्म के महायान रूप को संरक्षण दिया और चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन किया। उसके शासनकाल में स्वर्ण सिक्कों का प्रचलन हुआ। गांधार कला का उत्कर्ष हुआ और बुद्ध की मानव मूर्तियाँ बनाई गईं। कनिष्क का शासन धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विकास के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 3. मौर्योत्तर काल में कला और स्थापत्य के विकास का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
मौर्योत्तर काल में कला और स्थापत्य का उल्लेखनीय विकास हुआ। गांधार कला पर यूनानी प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है, जिसमें बुद्ध की मानव आकृतियाँ बनाई गईं। मथुरा कला पूर्णतः भारतीय शैली पर आधारित थी। स्तूपों, विहारों और मूर्तिकला का व्यापक विकास हुआ। यह काल भारतीय कला के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

प्रश्न 4. मौर्योत्तर काल में भारत और रोम के बीच व्यापार का वर्णन कीजिए।

उत्तर:
मौर्योत्तर काल में भारत और रोमन साम्राज्य के बीच समुद्री व्यापार अत्यंत विकसित हुआ। भारत से मसाले, कपास, हाथीदांत और बहुमूल्य रत्न निर्यात किए जाते थे, जबकि रोम से सोना और चांदी आयात की जाती थी। दक्षिण भारत में मिले रोमन सिक्के इस व्यापार के प्रमाण हैं। इस व्यापार से भारतीय नगरों की समृद्धि बढ़ी।


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